आत्मा का सबसे कमजोर रूप या स्थिति चमकीला रेत कण हुआ ।
2.
उछलती, कूदती, बाधाओं से टकराती कल-कल की संगीतमयी ध्वनि के साथ दरिया अपने जीवंत बहाव से राह में आने वाली चट्टानों को तोड़कर उसे पत्थर और फिर पत्थरों को रेत कण और मृदा कण में परिवर्तित करती चलती है.
3.
उस क्षण मैं सोच रहा था कि जिस देवी को हम इस अनंत सृष्टि की पालक, संहारकर्ता, निर्मात्री, सब मानते हैं, जिसमें समाये अनेकानेक ब्रह्मांडों के आगे इंसान तो क्या, स्वयं पृथ्वी का अस्तित्व नदी किनारे पड़े रेत कण जितना हो, उसके आगे धरती के एक क्षुद्र इंसान की गर्दन दो इंच उठाने या झुकान से क्या अंतर पड़नेवाला है!